साहिल - साक्षी की प्रेम कहानी

 पता है मैं कौन हूं, मैं साक्षी हूं। मैं वो साक्षी नहीं हूं, जिसकी आप शपथ लेते हो। मैं तो दिल्ली की बेटी वो साक्षी हूं,जिसका बेरहमी से कत्ल कर दिया गया।आज ये साक्षी कुछ कहना चाहती हैं आप सब से, ध्यान से सुनना:-

घर से निकली थी बाहर मैं, दिल्ली की सड़को पे।

रास्ते में ये सोच रही थी, लोगो को नाज है अपने बेटियों पे।

सोच यही रही थी मैं जब, मेरे सामने आया एक इंसान।

तू - तू मैं – मैं करने के बाद, बन गया वो हैवान।

देखते – देखते ही खंजर से गोद गया वो मेरा जिस्म।

दर्द मैं सहती रही, जैसे वाणो की सैया पे भीष्म।

माना की वो अब्दुल था, पर देखने वाले कुछ श्याम भी थे।

देता रहा वो दर्द मुझे, तड़प रहा मेरा वहा जिस्म था। 

साहिल–साक्षी आज चर्चित शीर्षक है,क्युकी बने आपलोग दर्शक थे।

मैं हर दर्द को सहती रही,वो शक्ति देने वाले राम थे।

ईश्वर को क्या मुंह दिखाओगे, हम ऐसे नपुंसक इंसान थे।

अब हिंदू–मुस्लिम से क्या फायदा, जब समय था तो कुछ किया नहीं।

बच सकती थी मेरी जान,पर आपने कोशिश किया नहीं।

मेरे साथ जो घटित हुआ , अब किसी के साथ न होने देना।

मेरे जितना दर्द अब किसी बच्ची को न सहने देना।


लेखिका:–  Khushboo Singh

 सहयोग:– R.S. Sikarwar 


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